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- सवैया
- सवैया
क्यों हँसि हेरि हियरा अरू क्यौं हित कै चित चाह बढ़ाई।
काहे कौं बालि सुधासने बैननि चैननि मैननि सैन चढ़ाई।
सौ सुधि मो हिय मैं घन-आनँद सालति क्यौं हूँ कढ़ै न कढ़ाई।
मीत सुजान अनीत की पाटी इते पै न जानियै कौनै पढ़ाई।। 11 ।।