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"पतझड़ और तितली / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | नहीं रूप या रंग, नहीं वह सुन्दरता का | + | नहीं रूप या रंग, नहीं वह सुन्दरता का साज़ |
ढूँढ रही है सूखे तरु में, तितली! क्या तू आज! | ढूँढ रही है सूखे तरु में, तितली! क्या तू आज! | ||
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सच वे फूल नहीं, तरुणी बालों में जिन्हें सजाती | सच वे फूल नहीं, तरुणी बालों में जिन्हें सजाती | ||
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वे पल्लव भी नहीं बैठ जिनकी छाया के नीचे | वे पल्लव भी नहीं बैठ जिनकी छाया के नीचे | ||
प्रेमी और प्रेमिकाओं की जोड़ी मोद मनाती | प्रेमी और प्रेमिकाओं की जोड़ी मोद मनाती | ||
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यहाँ थके माँदे परदेसी लेते नहीं बसेरा | यहाँ थके माँदे परदेसी लेते नहीं बसेरा | ||
शुक-पिक-कूजित पेड़ बना है गिलहरियों का डेरा | शुक-पिक-कूजित पेड़ बना है गिलहरियों का डेरा | ||
− | तितली! क्यों तू आज कुसुम कानन से दौड़ी आयी! | + | तितली! क्यों तू आज कुसुम-कानन से दौड़ी आयी! |
− | + | ठूँठ, अरी! यह कर न सकेगा समुचित स्वागत तेरा | |
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01:52, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
नहीं रूप या रंग, नहीं वह सुन्दरता का साज़
ढूँढ रही है सूखे तरु में, तितली! क्या तू आज!
कलियाँ नहीं देख जिनको, फूलों की बँधती आस
फूल नहीं हैं, तुझे खींच लेते जो अपने पास
जाने क्यों रूखी-सूखी डालों के चारों ओर
पतझड़ के पत्ते-सी उड़ती फिरती तू सोल्लास!
सच वे फूल नहीं, तरुणी बालों में जिन्हें सजाती
नहीं बचीं वे कलियाँ जिनसे माला गूँथी जाती
वे पल्लव भी नहीं बैठ जिनकी छाया के नीचे
प्रेमी और प्रेमिकाओं की जोड़ी मोद मनाती
यहाँ थके माँदे परदेसी लेते नहीं बसेरा
शुक-पिक-कूजित पेड़ बना है गिलहरियों का डेरा
तितली! क्यों तू आज कुसुम-कानन से दौड़ी आयी!
ठूँठ, अरी! यह कर न सकेगा समुचित स्वागत तेरा