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"इंतज़ार-२ / सत्यानन्द निरुपम" के अवतरणों में अंतर

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और जब मैंने
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तुम्हारी आमद तय थी
तेरे नाम की पुकार लगानी चाही
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थाप सीढ़ियों पर पड़ी
होंठों के पट खुल न सके
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किसी के पैरों की
कंठ की घंटियाँ बजें कैसे!
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कानों ने कहा-
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यह तुम नहीं हो
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और तुम नहीं थी
 +
सोचता हूँ
 +
कानों का तुम्हारे पैर की थापों से
 +
जो परिचय है, वह क्या है...
  
बस...दीये जलते हैं
+
कुछ अनाम भी रहे जिंदगी में
आँखों में
+
तो जिंदगी सफ़ेद हलके फूलों की
और हिय में तेरे होने का
+
भीनी-भीनी खुशबू-सी बनी रहती है
अहसास रहता है.
+
यह ख्याल आते ही
 
+
सोचना छोड़, देखने लगता हूँ
अमलतास के फूल खिल चुके
+
तुम्हारी राह...
हवा धूप में रंग उड़ाए फिरती है
+
खुशबू के कल्ले-दर-कल्ले फूटते हैं
तेरी देह-गंध मेरी देह से मिटती ही नहीं
+
कमरे के कोने में!
मन बौराया रहता है
+
 
+
मैना फिर आज तक दिखी ही नहीं
+
वह आख़री शाम थी
+
तुम्हारे जाने की
+
 
+
आसमान में जब भी टूटता है कोई तारा
+
मैं तुम्हारे आने की खुशी मांगता हूँ
+
जब भी खिडकी में उतर आता है
+
उदासी का पखेरू
+
मैं तेरे होंठों की खबर पूछता हूँ 
+
 
+
और बरबस
+
एक नाज़ुक सी मुसकुराहट
+
मेरे होंठों पर
+
छुम--न-न नाच जाती है
+
 
+
मुझे मालूम है
+
तुमने देखा है कोई सपना
+
मैं उसे विस्तार देता हूँ
+
 
+
हम बैठे हैं
+
किसी ऊँचे टीले के आख़री छोर पर
+
और नीचे नाचता है मोर
+
हवा पकड़ रही है जोर
+
बादल घिर आए हैं
+
 
+
पड़ने लगी हैं बौछारें
+
रिम-झिम
+
हम अपनी हथेलियाँ
+
पसार चुके हैं
+
 
+
मोर अपने पंख समेट चुका
+
दूर कहीं बिजली कड़की
+
और तुम डरी नहीं!
+
पिटने लगी तालियाँ...
+
 
+
मैं तुम्हारे बंधे हुए केश खोल देना चाहता हूँ सखि
+
आओ, उतरो, आहिस्ते
+
 
+
तुम्हें थामने को हाथ बढ़ाता हूँ
+
हवा गुदगुदाकर फिसल जाती है
+
...
+
 
+
ओह! तुम कहीं और हो
+
तुम्हें पुकार भी तो नहीं पाता...
+
 
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12:54, 19 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

तुम्हारी आमद तय थी
थाप सीढ़ियों पर पड़ी
किसी के पैरों की
कानों ने कहा-
यह तुम नहीं हो
और तुम नहीं थी
सोचता हूँ
कानों का तुम्हारे पैर की थापों से
जो परिचय है, वह क्या है...

कुछ अनाम भी रहे जिंदगी में
तो जिंदगी सफ़ेद हलके फूलों की
भीनी-भीनी खुशबू-सी बनी रहती है
यह ख्याल आते ही
सोचना छोड़, देखने लगता हूँ
तुम्हारी राह...
खुशबू के कल्ले-दर-कल्ले फूटते हैं
कमरे के कोने में!