भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमने नाव सिन्धु में छोड़ी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= नाव सिन्धु में छोड़ी / ग…)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
 
हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
 
हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
तट पर ही चक्कर देना क्या! लो अकूल से जोड़ी
+
तट पर ही चक्कर देना क्या! लौ अकूल से जोड़ी
 
 
 
 
 
साथी जो इस पार रहे हैं  
 
साथी जो इस पार रहे हैं  
वहीं, वहीं सर मार रहे हैं
+
वहीं, वहीं सिर मार रहे हैं
 
हम तो उसे सँवार रहे हैं  
 
हम तो उसे सँवार रहे हैं  
 
आयु बची जो थोड़ी
 
आयु बची जो थोड़ी
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
तट का खेल न उसे सुहाता
 
तट का खेल न उसे सुहाता
 
हमने उनसे जोड़ा नाता  
 
हमने उनसे जोड़ा नाता  
परिधि जिन्होंने छोड़ी
+
परिधि जिन्होंने तोड़ी
 
 
 
 
 
हम विलीन हों भले अतल में  
 
हम विलीन हों भले अतल में  
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
  
 
हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
 
हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
तट पर ही चक्कर देना क्या! लो अकूल से जोड़ी
+
तट पर ही चक्कर देना क्या! लौ अकूल से जोड़ी
 
<poem>
 
<poem>

02:23, 20 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
तट पर ही चक्कर देना क्या! लौ अकूल से जोड़ी
 
साथी जो इस पार रहे हैं
वहीं, वहीं सिर मार रहे हैं
हम तो उसे सँवार रहे हैं
आयु बची जो थोड़ी
 
सीमित जब असीम बन जाता
तट का खेल न उसे सुहाता
हमने उनसे जोड़ा नाता
परिधि जिन्होंने तोड़ी
 
हम विलीन हों भले अतल में
मिल न सकें अमरों के दल में
पर क्या कम यदि अंतिम पल में
उसने दृष्टि न मोड़ी!

हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
तट पर ही चक्कर देना क्या! लौ अकूल से जोड़ी