भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फिरे, सब फिरे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 22: | पंक्ति 22: | ||
नीचे महासिंधु, नभ ऊपर अपार है | नीचे महासिंधु, नभ ऊपर अपार है | ||
कोई संग-साथ न तो प्रिय-परिवार है | कोई संग-साथ न तो प्रिय-परिवार है | ||
− | झंझा की | + | झंझा की नाव, ज्वार की ही पतवार है |
कभी उठ गए, कभी गिरे | कभी उठ गए, कभी गिरे | ||
02:37, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
फिरे, सब फिरे
लहरों के बीच हम अकेले ही तिरे
कोई द्वार से ही, कोई गाँव के सिवान से
कोई पनघट से, कोई खेत-खलिहान से
जानकर फिरे कोई फिरे अनजान-से
आप अपने ही से घिरे
लौट गए कोई सुभाषित उछालते
सावधान करते, सहेजते, सँभालते
कुछ फिरे तीर से नयन-नीर ढालते
रूप के रसिक जो निरे
नीचे महासिंधु, नभ ऊपर अपार है
कोई संग-साथ न तो प्रिय-परिवार है
झंझा की नाव, ज्वार की ही पतवार है
कभी उठ गए, कभी गिरे
फिरे, सब फिरे
लहरों के बीच हम अकेले ही तिरे