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"कितने बंधु गये उस पार! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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विरह अनंत, मिलन दो दिन का | विरह अनंत, मिलन दो दिन का | ||
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उड़-उड़ जाता कर का तिनका | उड़-उड़ जाता कर का तिनका | ||
आँधी से हर बार | आँधी से हर बार |
03:55, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
कितने बंधु गये उस पार!
और किनारे पर हैं कितने जाने को तैयार
नौका पर चढ़ जाते हैं जो
मुड़कर भी न देखते तट को
कोई कितना भी कातर हो
करता रहे पुकार
विरह अनंत, मिलन दो दिन का
शोक यहाँ करिये किन-किन का!
उड़-उड़ जाता कर का तिनका
आँधी से हर बार
कितने बंधु गये उस पार!
और किनारे पर हैं कितने जाने को तैयार