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"अवध में कैसे पाँव धरूँ! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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कभी निकल आयी मैं बाहर | कभी निकल आयी मैं बाहर | ||
उसमें अब फिर से प्रवेश कर | उसमें अब फिर से प्रवेश कर | ||
− | लज्जा से न मरूँ! | + | लज्जा से न मरूँ! |
'दुखमय है कुल गाथा मेरी | 'दुखमय है कुल गाथा मेरी | ||
बीत गये युग देते फेरी | बीत गये युग देते फेरी | ||
प्रिय इतनी अब रात अँधेरी | प्रिय इतनी अब रात अँधेरी | ||
− | रवि को देख डरूँ | + | रवि को देख डरूँ |
'मन को पति-चरणों से जोड़े | 'मन को पति-चरणों से जोड़े | ||
अब मैं हूँ जग से मुँह मोड़े | अब मैं हूँ जग से मुँह मोड़े | ||
कोई व्यंग्य-बाण फिर छोड़े | कोई व्यंग्य-बाण फिर छोड़े | ||
− | क्यों यह सहन करूँ | + | क्यों यह सहन करूँ' |
अवध में कैसे पाँव धरूँ! | अवध में कैसे पाँव धरूँ! | ||
वनवासिनी पुन: रानी का कैसे स्वाँग भरूँ! | वनवासिनी पुन: रानी का कैसे स्वाँग भरूँ! |
04:02, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
अवध में कैसे पाँव धरूँ!
वनवासिनी पुन: रानी का कैसे स्वाँग भरूँ!
'जिस घर से कलंक ले सिर पर
कभी निकल आयी मैं बाहर
उसमें अब फिर से प्रवेश कर
लज्जा से न मरूँ!
'दुखमय है कुल गाथा मेरी
बीत गये युग देते फेरी
प्रिय इतनी अब रात अँधेरी
रवि को देख डरूँ
'मन को पति-चरणों से जोड़े
अब मैं हूँ जग से मुँह मोड़े
कोई व्यंग्य-बाण फिर छोड़े
क्यों यह सहन करूँ'
अवध में कैसे पाँव धरूँ!
वनवासिनी पुन: रानी का कैसे स्वाँग भरूँ!