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"स्त्री और घोडे / वत्सला पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
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स्त्री की हथेली से
निकल रहे
सुनहले पंखों वाले
घोडे.
(यह बच्चों की कहानी नहीं है)
टाप दर टाप
उड़ते रहे
फैलते गए
आकाश में
तब
स्त्री की देह से
निकलने लगीं
स्त्रियां
(यह केवल कल्पना नहीं है)
बचा लिए हैं
समस्त नक्षत्र तारे
छा गई हैं
अंतरिक्ष में
हर स्त्री ने
थाम लिए हैं
सुनहले घोडे.
अब वे सिर्फ
गुलाम हैं उनके
(यह एक हकीकत है)