भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्या हुआ तुमको अगर चेहरे बदलना आ गया / कृष्ण कुमार ‘नाज़’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: <poem>क्या हुआ तुमको अगर चेहरे बदलना आ गया हमको भी हालात के साँचे में …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:49, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
क्या हुआ तुमको अगर चेहरे बदलना आ गया
हमको भी हालात के साँचे में ढलना आ गया
रोशनी के वास्ते धागे को जलते देखकर
ली नसीहत मोम ने उसको पिघलना आ गया
शुक्रिया ऎ दोस्तो, बेहद तुम्हारा शुक्रिया
सर झुकाकर जो मुझे रस्ते पे चलना आ गया
सरफिरी आँधी का थोड़ा-सा सहारा क्या मिला
धूल को इंसान के सर तक उछलना आ गया
बिछ गये फिर खु़द-बखु़द रस्तों में कितने ही गुलाब
जब हमें काँटों पे नंगे पाँव चलना आ गया
चाँद को छूने की कोशिश में तो नाकामी मिली
हाँ मगर, नादान बच्चे को उछलना आ गया
पहले बचपन, फिर जवानी, फिर बुढ़ापे के निशान
उम्र को भी देखिए कपड़े बदलना आ गया