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"वजह है इश्क़ के ज़िन्दा रहने की / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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12:37, 1 अगस्त 2011 का अवतरण

गुलों को वजह मिल गई है महकने की

घटाएँ भी झूमती बल खाती हुई बरसी हैं

आसमाँ में चाँद का चेहरा निखर आया है

...और ख़्वाबों के चेहरे पर मुस्कराहट है

तमन्ना ने नए खूबसूरत पैरहन पहने

और मुद्दत की ख़ामोशी के बाद

शोखियाँ लौट आई है

एहसास पिघल कर आंसुओं से बह निकले हैं

जो जम गए थे, कभी तुम्हारे जाने के बाद

गिले और शिकवों की सियाही अब धुल गई है

मुझे मालूम है ये वस्ल के मौसम

ज़यादा देर नहीं ठहरेंगे

फिर हम और तुम ज़िन्दगी की उलझन में घिर कर

एक दूसरे से मिलने के लिए वक़्त के मोहताज़ होंगे

मगर तुम ऐसे ही ज़िन्दगी से कुछ पल चुराकर

मुझसे मिलने आते रहना

क्यूंकि हर पतझड़ से पहले आने वाला

बसंत का मौसम ही

वजह है इश्क़ के ज़िन्दा रहने की