भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपने हर कौल से, वादे से पलट जाएगा / आदिल रशीद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
  
 
आसमानों से परे यूँ तो है वुसअत उसकी
 
आसमानों से परे यूँ तो है वुसअत उसकी
तुम बुलाओगे तो कूजे में सिमट जाएगा
+
तुम बुलाओगे तो कूजे<ref>कुल्हड</ref>में सिमट जाएगा
  
 
</poem>
 
</poem>
  
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}

20:11, 1 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

अपने हर कौल <ref> कथन </ref> से, वादे से पलट जाएगा
जब वो पहुंचेगा बुलंदी पे तो घट जाएगा

अपने किरदार को तू इतना भी मशकूक <ref> जिस पर शक हो </ref>न कर
वर्ना कंकर की तरह से दाल से छट जाएगा

जिसकी पेशानी <ref>माथा,ललाट</ref>तकद्दुस <ref>पाकीज़गी</ref> का पता देती है
जाने कब उस के ख्यालों से कपट जाएगा

उसके बढ़ते हुए क़दमों पे कोई तन्ज़ न कर
सरफिरा है वो,उसी वक़्त पलट जाएगा

क्या ज़रूरी है के ताने रहो तलवार सदा
मसअला घर का है बातों से निपट जाएगा

आसमानों से परे यूँ तो है वुसअत उसकी
तुम बुलाओगे तो कूजे<ref>कुल्हड</ref>में सिमट जाएगा

शब्दार्थ
<references/>