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+ | नक्शे में घटते अपने घनत्व के खिलाफ़ | ||
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+ | इनमें भी वही आक्रोशित हैं | ||
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+ | मंत्री जी की तरह | ||
+ | जो आदिवासीयत का राग भूल गए | ||
+ | रेमण्ड का सूट पहनने के बाद । | ||
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+ | कोई नहीं बोलता इनके हालात पर | ||
+ | कोई नहीं बोलता जंगलों के कटने पर | ||
+ | पहाड़ों के टूटने पर | ||
+ | नदियों के सूखने पर | ||
+ | ट्रेन की पटरी पर पड़ी | ||
+ | तुरिया की लवारिस लाश पर | ||
+ | कोई कुछ नहीं बोलता | ||
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+ | केवल सियासत की गलियों में | ||
+ | आरक्षण के नाम पर | ||
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+ | उनके 'हिन्दू’ या 'ईसाई’ हो जाने की | ||
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+ | माफियाओं की कुल्हाड़ी से और | ||
+ | बढ़ रहे हैं कंक्रीटों के जंगल । | ||
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+ | या बढ़ते जंगल में । | ||
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20:17, 8 अगस्त 2011 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक : अघोषित उलगुलान (रचनाकार: अनुज लुगुन )
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'''अघोषित उलगुलान (आंदोलन)''' अल सुबह दान्डू का काफ़िला रुख़ करता है शहर की ओर और साँझ ढले वापस आता है परिन्दों के झुण्ड-सा, अजनबीयत लिए शुरू होता है दिन और कटती है रात अधूरे सनसनीखेज क़िस्सों के साथ कंक्रीट से दबी पगडंडी की तरह दबी रह जाती है जीवन की पदचाप बिल्कुल मौन ! वे जो शिकार खेला करते थे निश्चिंत ज़हर-बुझे तीर से या खेलते थे रक्त-रंजित होली अपने स्वत्व की आँच से खेलते हैं शहर के कंक्रीटीय जंगल में जीवन बचाने का खेल शिकारी शिकार बने फिर रहे हैं शहर में अघोषित उलगुलान में लड़ रहे हैं जंगल लड़ रहे हैं ये नक्शे में घटते अपने घनत्व के खिलाफ़ जनगणना में घटती संख्या के खिलाफ़ गुफ़ाओं की तरह टूटती अपनी ही जिजीविषा के खिलाफ़ इनमें भी वही आक्रोशित हैं जो या तो अभावग्रस्त हैं या तनावग्रस्त हैं बाकी तटस्थ हैं या लूट में शामिल हैं मंत्री जी की तरह जो आदिवासीयत का राग भूल गए रेमण्ड का सूट पहनने के बाद । कोई नहीं बोलता इनके हालात पर कोई नहीं बोलता जंगलों के कटने पर पहाड़ों के टूटने पर नदियों के सूखने पर ट्रेन की पटरी पर पड़ी तुरिया की लवारिस लाश पर कोई कुछ नहीं बोलता बोलते हैं बोलने वाले केवल सियासत की गलियों में आरक्षण के नाम पर बोलते हैं लोग केवल उनके धर्मांतरण पर चिंता है उन्हें उनके 'हिन्दू’ या 'ईसाई’ हो जाने की यह चिंता नहीं कि रोज कंक्रीट के ओखल में पिसते हैं उनके तलबे और लोहे की ढेंकी में कूटती है उनकी आत्मा बोलते हैं लोग केवल बोलने के लिए। लड़ रहे हैं आदिवासी अघोषित उलगुलान में कट रहे हैं वृक्ष माफियाओं की कुल्हाड़ी से और बढ़ रहे हैं कंक्रीटों के जंगल । दान्डू जाए तो कहाँ जाए कटते जंगल में या बढ़ते जंगल में ।