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23:18, 22 जुलाई 2007 का अवतरण


क्यों मेरे साथ-साथ आता है ?

मेरी मंज़िल है बेनिशाँ नादाँ

साथ मेरा-तेरा कहाँ नादाँ

थक गए पाँव पड़ गए छाले

मंज़िलें टिमटिमा रही हैं - दूर

बस्तियाँ और जा रही हैं - दूर

मैं अकेला चलूँगा ऎ साए

कौन अहदे-वफ़ा निभाता है

क्यों मेरे साथ-साथ आता है

तू अभी जा मिलेगा सायों में

मैं कहाँ जाऊँ मैं कहाँ जाऊँ

किसकी आग़ोश में अमाँ पाऊँ


(रचनाकाल : 1944)