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"बेकहे भी न रहा जाय और क्या कहिये! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>
 
  
बेकहे भी न रहा जाय और क्या कहिए!
 
प्यार इसको न कहा जाय और क्या कहिए!
 
 
जो भी कहिये, यही लगता है कुछ भी कह न सके
 
और चुप भी न रहा जाय, और क्या कहिए!
 
 
दर्द अपना उन्हें ग़ज़लों में कह रहे हैं गुलाब
 
जिनसे यह भी न सहा जाय, और क्या कहिए!
 
<poem>
 

02:10, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण