भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पेड़ और धर्म / सुरेश यादव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
छाँव उसकी बड़ी दूर तक जाए | छाँव उसकी बड़ी दूर तक जाए | ||
− | खुशबू की कहानियाँ हो घर - घर | + | खुशबू की कहानियाँ हो घर- घर |
10:25, 12 अगस्त 2011 का अवतरण
बस्ती के हर आँगन में
पेड़ हो बड़ा
खूब हो घना
खुशबूदार फूल हों
फल मीठे आते हों लदकर
छाँव उसकी बड़ी दूर तक जाए
खुशबू की कहानियाँ हो घर- घर
हवा के झोंके में
झरते रहें फलर
उठाते-खाते गुजरते रहें राहगीर
ऐसा एकर पेड़
बस्ती के हर आँगन में
लगाना ही होगा
लोग
भूल गए हैं – धर्म
पेड़ों को बतानान ही होगा।
00