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"टेढ़े-मेढ़े अन्दर / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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16:26, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

दर्पण बाहर सीधे आखर
टेढ़े-मेढ़े अन्दर

छवि शीतल मीठे जल की
पीने पर लगता खारा
जीवन डसने कूपों में
ऊपर तक आया पारा

घट-घट बैठा लिए उस्तरा
इक पागल-सा बन्दर

देखो चीलगाह पर जाकर
कितना कीमा सड़ता
कब थम जाएँ ये सांसें
अब बहुत सोचना पड़ता

कितने ही घर लील गया
उफनाता क्रूर समंदर

उतरी कंठी हंसों की
अब बगुलों ने है पहनी
बगिया के माली से ही तो
डरी हुई है टहनी

दीखे लाल-लाल लोहित
फांकों में कटा चुकंदर