भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कब तक? / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> दांव लगा कपटी शकुन…)
(कोई अंतर नहीं)

17:43, 12 अगस्त 2011 का अवतरण

दांव लगा कपटी शकुनी से
हार वरूं मैं कब तक ?

विपरीत तटों का हरकारा-
सेतु बनूँ मैं कब तक?
इनका-उनका बोझा-बस्ता
पीठ धरूँ मैं कब तक?

बड़े-बड़े जालिम पिंडों की
चोट सहूँ मैं कब तक?

पाँव फंसाए गहरे पानी
खड़ा रहूँ मैं कब तक ?
नीली होकर उधड़ी चमड़ी
धार गहूँ मैं कब तक?

कोई तो बतलाये आकर
यहाँ रहूँ मैं कब तक?

रोवां-रोवां हाड़ कंपाती
शीत सहूँ मैं कब तक?
बिजली, ओलों, बारिश वाली
रात सहूँ मैं कब तक?

बहुत हुआ अब और न होगा
धीर धरूँ मैं कब तक?