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"कब तक? / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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विपरीत तटों का हरकारा- | विपरीत तटों का हरकारा- | ||
− | सेतु बनूँ मैं कब तक? | + | सेतु बनूँ मैं कब तक ? |
इनका-उनका बोझा-बस्ता | इनका-उनका बोझा-बस्ता | ||
− | पीठ धरूँ मैं कब तक? | + | पीठ धरूँ मैं कब तक ? |
− | बड़े-बड़े | + | बड़े-बड़े ज़ालिम पिंडों की |
− | चोट सहूँ मैं कब तक? | + | चोट सहूँ मैं कब तक ? |
− | पाँव | + | पाँव फँसाए गहरे पानी |
खड़ा रहूँ मैं कब तक ? | खड़ा रहूँ मैं कब तक ? | ||
नीली होकर उधड़ी चमड़ी | नीली होकर उधड़ी चमड़ी | ||
− | धार गहूँ मैं कब तक? | + | धार गहूँ मैं कब तक ? |
− | कोई तो | + | कोई तो बतलाए आकर |
− | यहाँ रहूँ मैं कब तक? | + | यहाँ रहूँ मैं कब तक ? |
− | + | रोआँ-रोआँ हाड़ कँपाती | |
− | शीत सहूँ मैं कब तक? | + | शीत सहूँ मैं कब तक ? |
बिजली, ओलों, बारिश वाली | बिजली, ओलों, बारिश वाली | ||
− | रात सहूँ मैं कब तक? | + | रात सहूँ मैं कब तक ? |
− | बहुत हुआ अब और न होगा | + | बहुत हुआ, अब और न होगा |
− | धीर धरूँ मैं कब तक? | + | धीर धरूँ मैं कब तक ? |
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18:19, 12 अगस्त 2011 का अवतरण
दाँव लगा कपटी शकुनी से
हार वरूँ मैं कब तक ?
विपरीत तटों का हरकारा-
सेतु बनूँ मैं कब तक ?
इनका-उनका बोझा-बस्ता
पीठ धरूँ मैं कब तक ?
बड़े-बड़े ज़ालिम पिंडों की
चोट सहूँ मैं कब तक ?
पाँव फँसाए गहरे पानी
खड़ा रहूँ मैं कब तक ?
नीली होकर उधड़ी चमड़ी
धार गहूँ मैं कब तक ?
कोई तो बतलाए आकर
यहाँ रहूँ मैं कब तक ?
रोआँ-रोआँ हाड़ कँपाती
शीत सहूँ मैं कब तक ?
बिजली, ओलों, बारिश वाली
रात सहूँ मैं कब तक ?
बहुत हुआ, अब और न होगा
धीर धरूँ मैं कब तक ?