भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कि तुम मुझे मिलीं / रामानन्द दोषी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
कि दीप को प्रकाश-रेख | कि दीप को प्रकाश-रेख | ||
चाँद को नई किरन । | चाँद को नई किरन । | ||
+ | |||
+ | कि स्वप्न-सेज साँवरी | ||
+ | सरस सलज सजा रही | ||
+ | कि साँस में सुहासिनी | ||
+ | सिहर-सिमट समा रही | ||
+ | |||
+ | कि साँस का सुहाग | ||
+ | माँग में निखर उभर उठा | ||
+ | कि गंध-युक्त केश में | ||
+ | बाधा पवन सिहर उठा | ||
+ | कि प्यार-पीर में विभौर | ||
+ | बन चली कली सुमन | ||
+ | कि तुम मुझे मिलीं | ||
+ | मिला विहान को नया सृजन । | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
15:25, 13 अगस्त 2011 का अवतरण
कि तुम मुझे मिलीं
मिला विहान को नया सृजन
कि दीप को प्रकाश-रेख
चाँद को नई किरन ।
कि स्वप्न-सेज साँवरी
सरस सलज सजा रही
कि साँस में सुहासिनी
सिहर-सिमट समा रही
कि साँस का सुहाग
माँग में निखर उभर उठा
कि गंध-युक्त केश में
बाधा पवन सिहर उठा
कि प्यार-पीर में विभौर
बन चली कली सुमन
कि तुम मुझे मिलीं
मिला विहान को नया सृजन ।