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"कि तुम मुझे मिलीं / रामानन्द दोषी" के अवतरणों में अंतर
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कि तुम मुझे मिलीं | कि तुम मुझे मिलीं | ||
मिला विहान को नया सृजन । | मिला विहान को नया सृजन । | ||
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+ | कि प्राण पाँव में भरो | ||
+ | भरो प्रवाह राह में | ||
+ | कि आस में उछाह सम | ||
+ | बसो सजीव चाह में | ||
+ | कि रोम-रोम रम रहो | ||
+ | सरोज में सुबास-सी | ||
+ | कि नैन कोर छुप रहो | ||
+ | असीम रूप प्यास-सी | ||
+ | अबाध अंग-अंग में | ||
+ | उफान बन उठो सजनि | ||
+ | कि तुम मुझे मिलीं | ||
+ | मिला विहान को नया सृजन । | ||
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16:04, 13 अगस्त 2011 का अवतरण
कि तुम मुझे मिलीं
मिला विहान को नया सृजन
कि दीप को प्रकाश-रेख
चाँद को नई किरन ।
कि स्वप्न-सेज साँवरी
सरस सलज सजा रही
कि साँस में सुहासिनी
सिहर-सिमट समा रही
कि साँस का सुहाग
माँग में निखर उभर उठा
कि गंध-युक्त केश में
बाधा पवन सिहर उठा
कि प्यार-पीर में विभौर
बन चली कली सुमन
कि तुम मुझे मिलीं
मिला विहान को नया सृजन ।
कि प्राण पाँव में भरो
भरो प्रवाह राह में
कि आस में उछाह सम
बसो सजीव चाह में
कि रोम-रोम रम रहो
सरोज में सुबास-सी
कि नैन कोर छुप रहो
असीम रूप प्यास-सी
अबाध अंग-अंग में
उफान बन उठो सजनि
कि तुम मुझे मिलीं
मिला विहान को नया सृजन ।