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"बचपन का सूरज / सुरेश यादव" के अवतरणों में अंतर

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17:42, 13 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

बचपन का सूरज
छोटा था
निकल कर तालाब से सुबह-सुबह
पेड़ पर टंग जाता था
खेत पर जाते हुए
टकटकी बाँधे - मैं
देखता रह जाता था
कभी-कभी तो
चलते-चलते रुक कर
खड़ा हो जाता था
बबूल के काँटों में
सूरज को उलझा कर
बैठता जब मेड़ पर
सूरज को फिर
पसरा छोड़ देता
सरसों के खेत पर
कज़री बाग में छिपते हुए सूरज को
फलांगते हुए कच्ची छतें
निकाल कर लाता था बाहर
और जी चाही देर खेल कर
बेचारे सूरज को
डूब जाने देता था - थका जान कर
बचपन का सूरज
छोटा था
मैं भी छोटा था
बड़ा हो गया हूँ
इतना कि मन सब जान गया है
सूरज भी बड़ा हो गया है
इतना कि ‘ठहर गया है’
धरती घूमने लगी है
जबसे - सूरज के चारों ओर
मैं धरती पर घूमने लग जाता हूँ
जब कभी ताकता हूँ अब
‘ठहरा हुआ सूरज’
...डूबने लग जाता हूँ