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"सात हाइकु / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

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पिक कूकेगा।
 
पिक कूकेगा।
  
लोक रोपता
 
महाकाव्य की पौध
 
लुनता कवि।
 
 
बादल रोया
 
धरती भी उमगी
 
फसल उगी।
 
 
स्वागत हुआ
 
दूब-धान है आया
 
लोक जीवन।
 
 
मरने न दो
 
परंपराएँ कभी
 
बचोगे तभी।
 
 
नदी बनाता
 
सोख हवा से नमीं
 
वृद्ध पहाड़।
 
 
छीन लेता है
 
धनी मेघों से जल
 
दानी पहाड़
 
 
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17:55, 13 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

क्यों तू उदास
दूब अभी है ज़िंदा
पिक कूकेगा।