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"इक जरा छींक ही दो तुम / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या | शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या | ||
− | घोल के सर पे लुढकाते हैं | + | घोल के सर पे लुढकाते हैं गिलसियाँ भर के |
औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर | औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर | ||
− | + | पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो | |
− | इक | + | इक पथराई सी मुस्कान लिए |
बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी । | बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी । | ||
− | जब | + | जब धुआँ देता, लगातार पुजारी |
घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर | घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर |
14:25, 7 अक्टूबर 2008 का अवतरण
चिपचिपे दूध से नहलाते हैं
आंगन में खड़ा कर के तुम्हें ।
शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
घोल के सर पे लुढकाते हैं गिलसियाँ भर के
औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर
पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो
इक पथराई सी मुस्कान लिए
बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी ।
जब धुआँ देता, लगातार पुजारी
घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर
इक जरा छींक ही दो तुम,
तो यकीं आए कि सब देख रहे हो ।