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"आती है दि‍न रात हवा/ गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल'" के अवतरणों में अंतर

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दीवाने की, मीठी यादें,  
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दीवाने की मीठी यादें,  
लाती है, दि‍न-रात हवा। मेरे शहर से, चुपके-चुपके,  
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लाती है दि‍न-रात हवा।  
जाती है, दि‍न-रात हवा। ति‍तली बन कर,  
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मेरे शहर से चुपके-चुपके,  
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जाती है दि‍न-रात हवा।
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ति‍तली बन कर,  
 
जुगनू बन कर,  
 
जुगनू बन कर,  
आती है, दि‍न रात हवा।
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आती है दि‍न रात हवा।
  
 
सूना पड़ा है, शहर का कोना,  
 
सूना पड़ा है, शहर का कोना,  
अब भी यादें करता है। पत्‍ता-पत्‍ता, बूँटा-बूँटा,  
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अब भी यादें करता है।  
अपनी बातें करता है। पाती बन कर,  
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पत्‍ता-पत्‍ता, बूँटा-बूँटा,  
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अपनी बातें करता है।
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पाती बन कर,  
 
खुशबू बन कर,  
 
खुशबू बन कर,  
आती है, दि‍न-रात हवा।
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आती है दि‍न-रात हवा।
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फि‍र महकेगा, कोना-कोना,  
 
फि‍र महकेगा, कोना-कोना,  
सपनों को संसार मि‍ला। शहर की उस वीरान गली को  
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सपनों को संसार मि‍ला।
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शहर की उस वीरान गली को  
 
फि‍र से इक गुलज़ार मि‍ला।
 
फि‍र से इक गुलज़ार मि‍ला।
 
रुन-झुन बन कर,  
 
रुन-झुन बन कर,  
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मेहँदी लगी है, हलदी लगी है,  
 
मेहँदी लगी है, हलदी लगी है,  
तुम आओगे ले बारात। संगी साथी, सखी सहेली,  
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तुम आओगे ले बारात।  
बन जाओगे ले कर हाथ।  मातुल बन कर,  
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संगी साथी, सखी सहेली,  
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बन जाओगे ले कर हाथ।   
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मातुल बन कर,  
 
बाबुल बन कर,  
 
बाबुल बन कर,  
 
आती है दि‍न रात हवा।  
 
आती है दि‍न रात हवा।  
 
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23:12, 19 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

दीवाने की मीठी यादें,
लाती है दि‍न-रात हवा।
मेरे शहर से चुपके-चुपके,
जाती है दि‍न-रात हवा।
ति‍तली बन कर,
जुगनू बन कर,
आती है दि‍न रात हवा।

सूना पड़ा है, शहर का कोना,
अब भी यादें करता है।
पत्‍ता-पत्‍ता, बूँटा-बूँटा,
अपनी बातें करता है।
पाती बन कर,
खुशबू बन कर,
आती है दि‍न-रात हवा।
  
फि‍र महकेगा, कोना-कोना,
सपनों को संसार मि‍ला।
शहर की उस वीरान गली को
फि‍र से इक गुलज़ार मि‍ला।
रुन-झुन बन कर,
गुन-गुन बन कर,
आती है दि‍न रात हवा।।

मेहँदी लगी है, हलदी लगी है,
तुम आओगे ले बारात।
संगी साथी, सखी सहेली,
बन जाओगे ले कर हाथ।
मातुल बन कर,
बाबुल बन कर,
आती है दि‍न रात हवा।