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"इसी ख़ातिर तो उसकी आरती हमने उतारी है / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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10:44, 22 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

इसी ख़ातिर तो उसकी आरती हमने उतारी है
ग़ज़ल भी माँ है और उसकी भी शेरों की सवारी है

मुहब्बत धर्म है हम शायरों का दिल पुजारी है
अभी फ़िरकापरस्तों पे हमारी नस्ल भारी है

सितारे , फूल जुगनू चाँद, सूरज हैं हमारे सँग
कोई सरहद नहीं ऐसी अजब दुनिया हमारी है

वो दिल के दर्द की खुश्बू आलम है कि मत पूछो
तुम्हारी राह में ये उम्र जन्नत में गुज़ारी है

ये दुनिया क्या सुधारेगी हमें, हम तो हैं दीवाने
हमीं लोगों ने अबतक अक्ल दुनिया की सुधारी है