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"तमन्नाओं को जैसे क़ुव्वते -परवाज़ देती है / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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ख़बर    दुनिया को लेकिन कब निगाहे -नाज़ देती है  
 
ख़बर    दुनिया को लेकिन कब निगाहे -नाज़ देती है  
  
वो    दिल  नग्öमे   सुनाने  के  लिये  बेचैन रहता था
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वो    दिल  नगमे   सुनाने  के  लिये  बेचैन रहता था
 
मगर  हाथों  में  किस्मत बस  शिकस्ता साज़ देती है  
 
मगर  हाथों  में  किस्मत बस  शिकस्ता साज़ देती है  
  

10:47, 22 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

तमन्नाओं को जैसे क़ुव्वते -परवाज़ देती है
मेरी पहली मुहब्बत दूर से आवाज़ देती है

ज़माने से छुपा के खुद को मुझ पे खोल देती है
इशारों की ज़ुबाँ से वो बदन के राज़ देती है

ग़ज़ल के ताजमहलों में मुहब्बत दफ्न करने की
कोई आहट मुझे अक्सर मेरी मुमताज़ देती है

मैं वो महबूब जो दोशीज़गी के सच से वाकिफ़ हूँ
ख़बर दुनिया को लेकिन कब निगाहे -नाज़ देती है

वो दिल नगमे सुनाने के लिये बेचैन रहता था
मगर हाथों में किस्मत बस शिकस्ता साज़ देती है

मैं उसकी मैं को अपनी ज़िन्दगी की मय समझता हूँ
वफ़ा दिल को कहाँ सुनने सही अल्फ़ाज़ देती है