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"बसंत आने को है.. / रवि प्रकाश" के अवतरणों में अंतर

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08:11, 24 अगस्त 2011 का अवतरण

दुनिया भर में उठ रहे

तमाम विद्रोहों के बीच

अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाते हुए

हम बैठे हुए हैं विश्वविद्यालय

की सीढियों पर

पोस्टरों के साथ !

जिनकी जबान हम बोल रहे हैं ,

जो चले आये है दुनिया भर में पसरे

लोकतंत्र के रेगिस्तान से !

जिनका कहना है कि

अब वहाँ सिर्फ कैक्टस ही उग सकते हैं

हमारी जगह अब वहाँ बाकी नहीं है !

तो हवाएं बहुत तेज़ हैं,

पत्तियां झड चुकी हैं,

और धूप सीधी आ रही है

लेकिन परछाइयों में कहीं ना कहीं

शाखों का हस्तछेप बरक़रार है

और शाख के हर कोने से

हरा विद्रोह पनप रहा है

कि बसंत आने को है!

ये कैक्टसों की दुनिया को खुलेयाम चुनौती है

कि बसंत आने को है!