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"नेता (दो) / अक्षय उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
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कभी वहाँ | कभी वहाँ | ||
मौसम के झूले पे झूलेगा | मौसम के झूले पे झूलेगा | ||
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तेरी आत्मा | तेरी आत्मा | ||
चोर दरवाज़ों से साँस लेगी | चोर दरवाज़ों से साँस लेगी |
15:36, 26 अगस्त 2011 का अवतरण
अच्छा
बेटा तू इतना अकड़ता है
संतरी को
मंत्री होने पर रगड़ता है
फूँक मारते ही तू फूलेगा
फूलेगा तू
और एक ही दिन में
पचास वर्षों की कमी छू लेगा
कभी यहाँ
कभी वहाँ
मौसम के झूले पे झूलेगा
बातों की सिक्कड़ में बँधी
तेरी आत्मा
चोर दरवाज़ों से साँस लेगी
तहख़ानों में विश्राम करेगी
तू उड़ेगा भी, उड़ेगा तू
और बीऽऽसवीं मंज़िल पर जाते-जाते
तू सब कुछ पा लेगा
मगर भूल मत बेटा
यही वो संतरी होग
तेरे इस्तीफ़े के बाद
तेरी पृष्ठभूमि में बाँस हकेलता
यही संतरी होगा
अगली सुबह तुझे इस कमरे से बाहर धकेलता
और थूकता तेरे ऊपर
अपने सपनों को आँख में बचाते
यही संतरी होगा
बताता हुआ कि संतरी
जनता का हिस्सा है
और मंत्री
चालीस चोरों का क़िस्सा ।