भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नेता (दो) / अक्षय उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अक्षय उपाध्याय |संग्रह =चाक पर रखी धरती / अक्षय उ…)
 
छो ("नेता (दो) / अक्षय उपाध्याय" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
फूलेगा तू
 
फूलेगा तू
 
और एक ही दिन में
 
और एक ही दिन में
पचास वर्शःओं की कमी छू लेगा
+
पचास वर्षों की कमी छू लेगा
 
कभी यहाँ
 
कभी यहाँ
 
कभी वहाँ
 
कभी वहाँ
 
मौसम के झूले पे झूलेगा
 
मौसम के झूले पे झूलेगा
  
बातों की सिक्कड़ में बंधी
+
बातों की सिक्कड़ में बँधी
 
तेरी आत्मा
 
तेरी आत्मा
 
चोर दरवाज़ों से साँस लेगी
 
चोर दरवाज़ों से साँस लेगी

15:36, 26 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

अच्छा
बेटा तू इतना अकड़ता है
संतरी को
मंत्री होने पर रगड़ता है

फूँक मारते ही तू फूलेगा
फूलेगा तू
और एक ही दिन में
पचास वर्षों की कमी छू लेगा
कभी यहाँ
कभी वहाँ
मौसम के झूले पे झूलेगा

बातों की सिक्कड़ में बँधी
तेरी आत्मा
चोर दरवाज़ों से साँस लेगी
तहख़ानों में विश्राम करेगी

तू उड़ेगा भी, उड़ेगा तू
और बी‍ऽऽसवीं मंज़िल पर जाते-जाते
तू सब कुछ पा लेगा

मगर भूल मत बेटा
यही वो संतरी होग

तेरे इस्तीफ़े के बाद
तेरी पृष्ठभूमि में बाँस हकेलता
यही संतरी होगा
अगली सुबह तुझे इस कमरे से बाहर धकेलता
और थूकता तेरे ऊपर
अपने सपनों को आँख में बचाते
यही संतरी होगा

बताता हुआ कि संतरी
जनता का हिस्सा है
और मंत्री
चालीस चोरों का क़िस्सा ।