भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बिखरने के लिए / निशांत मिश्रा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशांत मिश्रा }} {{KKCatKavita}} <poem> उनके सपनों को क्यों बस…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:39, 26 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
उनके सपनों को क्यों बसाऊं आँखों में,
बिखरने के लिए,
अपने ही सपने ही क्या कम हैं,
चूर-चूर होने के लिए,
न उतर सका जो खरा उनकी उम्मीदों पे,
खता मेरी थी उनकी नहीं,
अहसास है इसका इस कदर दिल में,
तड़पने के लिए,
बसाना चाहूं सपनों की दुनिया,
बसा नहीं सकता,
फिर से बिखरने के लिए....