"मत कर नारी का अपमान / गोपाल कृष्ण भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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वंश चलाने को वो बेटा-बेटी जनती, | वंश चलाने को वो बेटा-बेटी जनती, | ||
इनका निरादर,इस धरती पर रौरव है। | इनका निरादर,इस धरती पर रौरव है। | ||
− | बिन इसके ना हो जाये घर-घर | + | बिन इसके ना हो जाये घर-घर सुनसान।। |
अब भी सम्हल जा----------- | अब भी सम्हल जा----------- | ||
सखी-सहेली,छैल-छबीली,वो अलबेली। | सखी-सहेली,छैल-छबीली,वो अलबेली। | ||
बन जाये ना इक दिन वो इतिहास पहेली। | बन जाये ना इक दिन वो इतिहास पहेली। | ||
− | झेल दिनों-दिन, पल-पल दहशत औ प्रताड़ना, | + | झेल दिनों-दिन,पल-पल दहशत औ प्रताड़ना, |
चण्डी-दुर्गा ना बन जाये नार नवेली। | चण्डी-दुर्गा ना बन जाये नार नवेली। | ||
− | इसका संरक्षण करता | + | इसका संरक्षण करता कानून–विधान।। |
− | अब भी | + | अब भी सम्हल जा----------- |
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पर्व,तीज-त्योहार,व्रतोत्सव,लेना-देना। | पर्व,तीज-त्योहार,व्रतोत्सव,लेना-देना। | ||
माँ-बहना-बेटी-बहु है मर्यादा गहना। | माँ-बहना-बेटी-बहु है मर्यादा गहना। | ||
कुल-कुटुम्ब की रीत,धरोहर,परम्परायें, | कुल-कुटुम्ब की रीत,धरोहर,परम्परायें, | ||
संस्कार कोई भी इनके बिना मने ना। | संस्कार कोई भी इनके बिना मने ना। | ||
− | प्रेम लुटा कर तन-मन-धन करती | + | प्रेम लुटा कर तन-मन-धन करती बलिदान।। |
− | अब भी | + | अब भी सम्हल जा----------- |
धरा सहिष्णु,नारी सहिष्णु,ममता की मूरत। | धरा सहिष्णु,नारी सहिष्णु,ममता की मूरत। | ||
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सुर मुनि सब इस,आदिशक्ति के हैं आराधक, | सुर मुनि सब इस,आदिशक्ति के हैं आराधक, | ||
मानव में हैं क्यूँ ऐसी,प्रकृति बदसूरत। | मानव में हैं क्यूँ ऐसी,प्रकृति बदसूरत। | ||
− | भारी मूल्य चुकाना होगा,ऐ मनु! | + | भारी मूल्य चुकाना होगा,ऐ मनु!मान।। |
अब भी सम्हैल जा------------ | अब भी सम्हैल जा------------ | ||
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हर युग में नारी पर,अति ने,युग बदले हैं, | हर युग में नारी पर,अति ने,युग बदले हैं, | ||
आज भी अत्याचारों से,बेबस है नारी। | आज भी अत्याचारों से,बेबस है नारी। | ||
− | एक प्रलय को पुन: हो रहा | + | एक प्रलय को पुन: हो रहा अनुसंधान।। |
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रोम रोम से शुक्र फटेगा,तम रग रग से, | रोम रोम से शुक्र फटेगा,तम रग रग से, | ||
प्रकृति करेगी जो बीभत्स,दृश्य तब सर्जित। | प्रकृति करेगी जो बीभत्स,दृश्य तब सर्जित। | ||
− | प्रकृति प्रलय का तब लेगी | + | प्रकृति प्रलय का तब लेगी स्वप्रसंज्ञान।। |
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अब भी सम्हल जा कर तू नारी का सम्मान। | अब भी सम्हल जा कर तू नारी का सम्मान। | ||
लोक-संस्कृति समृद्धि नारी का वरदान। | लोक-संस्कृति समृद्धि नारी का वरदान। | ||
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23:42, 28 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
अब भी सम्हल जा मत कर नारी का अपमान।
लोक-संस्कृति समृद्ध इसी से है नादान।
कुलदेवी,कुल की रक्षक,कुल गौरव है।
बहिन-बहू-माता-बेटी यही सौरव है।
वंश चलाने को वो बेटा-बेटी जनती,
इनका निरादर,इस धरती पर रौरव है।
बिन इसके ना हो जाये घर-घर सुनसान।।
अब भी सम्हल जा-----------
सखी-सहेली,छैल-छबीली,वो अलबेली।
बन जाये ना इक दिन वो इतिहास पहेली।
झेल दिनों-दिन,पल-पल दहशत औ प्रताड़ना,
चण्डी-दुर्गा ना बन जाये नार नवेली।
इसका संरक्षण करता कानून–विधान।।
अब भी सम्हल जा-----------
पर्व,तीज-त्योहार,व्रतोत्सव,लेना-देना।
माँ-बहना-बेटी-बहु है मर्यादा गहना।
कुल-कुटुम्ब की रीत,धरोहर,परम्परायें,
संस्कार कोई भी इनके बिना मने ना।
प्रेम लुटा कर तन-मन-धन करती बलिदान।।
अब भी सम्हल जा-----------
धरा सहिष्णु,नारी सहिष्णु,ममता की मूरत।
हर देवी की छवि में है,नारी की सूरत।
सुर मुनि सब इस,आदिशक्ति के हैं आराधक,
मानव में हैं क्यूँ ऐसी,प्रकृति बदसूरत।
भारी मूल्य चुकाना होगा,ऐ मनु!मान।।
अब भी सम्हैल जा------------
महाभारत का मूल बनी जो,थी वह नारी।
रामायण का श्रेय लिया वो भी थी नारी।
हर युग में नारी पर,अति ने,युग बदले हैं,
आज भी अत्याचारों से,बेबस है नारी।
एक प्रलय को पुन: हो रहा अनुसंधान।।
अब भी सम्हल जा-----------
नारी ना होगी तब होगा,जग परिवर्तित।
सेवा भाव खत्म उद्यम,पशुवत परिवर्धित।
रोम रोम से शुक्र फटेगा,तम रग रग से,
प्रकृति करेगी जो बीभत्स,दृश्य तब सर्जित।
प्रकृति प्रलय का तब लेगी स्वप्रसंज्ञान।।
अब भी सम्हल जा कर तू नारी का सम्मान।
लोक-संस्कृति समृद्धि नारी का वरदान।