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"आ राजस्थानी भाषा है / शक्तिदान कविया" के अवतरणों में अंतर

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इणरौ इतिहास अनूठो है, इण मांय मुलक री आसा है ।
चहूंकूंटां चावी नै ठावी, आ राजस्थानी भासा है ।

जद ही भारत में सताजोग, आफ़त री आंधी आई ही ।
बगतर री कड़ियां बड़की ही, जद सिन्धू राग सुणाई ही ।
गड़गड़िया तोपां रा गोळा, भालां री अणियां भळकी ही ।
जोधारां धारां जुड़तां ही, खाळां रातम्बर खळकी ही ।
रड़वड़ता माथा रणखेतां, अड़वड़ता घोड़ा ऊलळता ।
सिर कटियां सूरा समहर में, ढालां तरवारां ले ढळता ।
रणबंका भिड़ आरांण रचै, तिड़ पेखै भांण तमासा है ।
उण बखत हुवै ललकार उठै, वा राजस्थानी भासा है ॥१॥

इणमें सतियां रा शिलालेख, इणमें संतां री बाणी है ।
इणमें पाबू रा परवाड़ा, इणमें रजवट रो पांणी है ।
इणमें जांभै री जुगत जोय, पीपै री दया प्रकासी है ।
दीठौ समदरसी रामदेव, दादू सत नांम उपासी है ।
इणमें तेजै रा वचन तौर, इणमें हमीर रो हठ पेखौ ।
आवड़ करनी मालणदे रा, इणमें परचा परगट देखौ ।
जद तांई संत सूरमा अर, साहितकारां री सासा है ।
करसां रै हिवड़ै री किलोळ, आ राजस्थानी भासा है ॥२॥

करमां री इण बोली में ही, भगवान खीचडौ़ खायौ है ।
मीरां मेड़तणी इण में ही, गिरधर गोपाळ रिझायौ है ।
इणमें ही पिव सूं माण हेत, राणी ऊमांदे रूठी ही ।
पदमणियां इणमें पाठ पढ्यौ, जद जौहर ज्वाळा ऊठी ही ।
इणमें हाडी ललकार करी, जद आंतड़ियां परनाळी ही ।
मुरधर री बागडोर इणमें ही, दुरगादास संभाळी ही ।
इणमें प्रताप रौ प्रण गूंज्यौ, जद भेंट करी भामासा है ।
सतवादी घणा सपूतां री, आ राजस्थानी भासा है ॥३॥

इणमें ही गायौ हालरियौ, इणमें चंडी री चिरजावां ।
इणमें ऊजमणै गीत गाळ, गुण हरजस परभात्यां गावां ।
इणमें ही आडी औखांणा, ओळगां भिणत वातां इणमें ।
जूनौ इतिहास जौवणौ व्है, तौ अणगिणती ख्यातां इणमें ।
इणमें ही ईसरदास अलू, भगती रा दीप संजोया है ।
कवि दुरसै बांकीदास करन, सूरजमल मोती पोया है ।
इणमें ही पीथल रचि वेलि, रचियोड़ा केइक रासा है ।
डिंगळ गीतां री डकरेलण, आ राजस्थानी भासा है ।।४॥

इणमें ही हेड़ाऊ जलाल, नांगोदर लाखौ गाईजै । सौढो खींवरौ उगेरै जद, चंवरी में धण परणाईजै । काछी करियौ नै तौडड़ली, राईको रिड़मल रागां में । हंजलौ मौरूड़ौ हाड़ौ नै, सूवटियौ हरियै बागां में । इणमें ही जसमां औडण नै, मूमल रूप सरावै है । कुरजां पणिहारी काछवियौ, बरसाळौ रस बरसावै है । गावै इणमें ही गोरबंद, मनहरणा बारैमासा है । रागां रीझाळू रंगभीनी, आ राजस्थानी भासा है ॥५॥

इणमें ही सपना आया है, इणमें ही औळूं आई है । इणमें ही आयल अरणी नै, झेडर बाळौचण गाई है । इणमें ही धूंसौं बाज्यौ है, रण-तोरण वन्दण रीत हुई । इणमें ही वाघै-भारमली, ढोलै-मरवण री प्रीत हुई । इणमें ही बाजै बायरियौ, इणमें ही काग करूकै है । इणमें ही हिचकी आवै है, इणमें ही आंख फ़रूकै है । इणमें ही जीवण-मरण जोय, अन्तस रा आसा-वासा है । मोत्यां सूं मूंगी घणमीठी, आ राजस्थानी भासा है ॥६॥