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"अपनी आपत्तियों को न करना मुखर मौन धारे रहो / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

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17:59, 29 अगस्त 2011 का अवतरण

अपनी आपत्तियों को न करना मुखर मौन धारे रहो व्यर्थ में दुश्मनी सबसे लेते हो क्यो सबके प्यारे रहो

बाँध कर गठरी रख दो कबाड़े में तुम अपनी प्रतिभाओं की लूट में सम्मिलित हो सको तो करो आस सुविधाओं की वरना जैसे भी हो काट दो ज़िन्दगी मन को मारे रहो अपनी आपत्तियों को .............................................................

हाँ में हाँ जो मिलाए वही है सबल, हाँ वही है सफल झूठी तारीफ़ करना ही है मंत्र उन्नति का मित्रो प्रबल सीख लो मंत्र यह संकटों से स्वयं को उबारे रहो अपनी आपत्तियों को ............................................................

धक्का-मुक्की का है ये ज़माना ज़रा सावधानी रखो कौन धकियाए क्या है ठिकाना ज़रा सावधानी रखो पाओ मौक़ा जहाँ यार धँस लो स्वयं को पसारे रहो अपनी आपत्तियों को ............................................................