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"वन जाने को राम नहीं तैयार, पढ़ा अख़बार ! / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

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19:45, 29 अगस्त 2011 का अवतरण

वन जाने को राम नहीं तैयार, पढ़ा अख़बार ! दशरथ जी को दे दी है फटकार, पढ़ा अख़बार !

इस युग में अचनों-वचनों का कोई मोल नहीं हरिश्चन्द्र है कौन बात में किसकी झोल नहीं अपने कहे हुए से इंसाँ टलता है फौरन वादा हुआ बरफ़ का ढेला गलता है फौरन झूठ के बल पर क़ायम है संसार, पढ़ा अख़बार ! वन जाने........................................................................

कृष्ण-कंस में नहीं रही है अब कोई अनबन अति चिंतित वसुदेव-देवकी टूट गया है मन राम और रावण में सांठ-गांठ की चर्चाएँ असंतुष्ट हैं संत कि खंडित होंगी आशाएँ है खटाई में सच्चों का उद्धार, पढ़ा अख़बार ! वन जाने......................................................................

भीष्म पितामह नित्य प्रतिज्ञाएँ करते हैं भंग धर्मराज अक्सर दिखाई देते अधर्म के संग विदुर नीति को त्याग सदा चलते अनीति की चाल कर्ण महादानी हड़पा करते औरों का माल नये रूप में उतरे हैं अवतार, पढ़ा अख़बार ! वन जाने.......................................................................

धीरज रखिए भीम मचाते हैं क्यों व्यर्थ बवाल पांचाली को चीर-हरण को कोई नहीं मलाल पाँचों पाण्डव एक नहीं, कैसे ठानेंगे युद्ध दुर्योधन से अधिक युधिष्ठिर अर्जुन से हैं क्रुद्ध पूर्ण सुरक्षित है कौरव सरकार, पढ़ा अख़बार ! वन जाने.........................................................................

सिद्धान्तों का केवल भाषण में होता है काम तन जाती है छतरी थोड़ा भी लगता यदि घाम नैतिकता दौलत के आगे भरती है पानी आदर्शों की ऐन वक्त पर मर जाती नानी ब्रह्मलोक तक पसरा भ्रष्टाचार, पढ़ा अख़बार ! बन जाने..........................................................................