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"मैंने हवा को महसूस किया / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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12:55, 30 अगस्त 2011 का अवतरण
मैंने हवा को महसूस किया -
शून्य को सम्पन्न बनाते हुए,
सरहदों के फासले मिटाते हुए,
खुशबु को पंख लगाते हुए,
आवाज की दुनिया सजाते हुए,
बिना कहीं भी ठहरे,
यायावर जीवन बिताते हुए,
और फिर मुझे
खुद पर तरस आया.
मैं -
यानि कि एक आदम जात,
जो -
संपन्नता को शुन्य की ओर
ले जा रहा है,
सरहदों को छोड़ो,
दिलों में भी
फासले बढाता जा रहा है,
खुशबु की जगह,
जहरीली गैसों का
अम्बार लगाता जा रहा है,
हर वो आवाज,
जो दमदार नहीं है,
उसे और दबाता जा रहा है,
मैं -
जिसे कि पहचाना जाता था,
मानवीय मूल्यों के शोधकर्ता के रूप में,
ठहर चूका हूँ -
इर्ष्या और द्वेष की चट्टान पर.
और जब ये सब -
देखा,
सोचा,
समझा,
सचमुच,
मुझे -
खुद पर तरस आया.