"हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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− | कठिन वक्त में आता है तू, सच्ची राह दिखाता है तू| | + | <poem> |
− | हम से जो हो पाए न सम्भव, चुटकी में कर जाता है तू| | + | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम| |
− | अहंकार मिटता है जहाँ पे, वहीं है तेरा धाम|| | + | ना रूप तेरा, ना रंग तेरा, |
− | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम... | + | ना जानू तेरा नाम|| |
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− | हार्डवेयर जो मढ़ा है तूने, उसकी कोई होड़ नहीं है| | + | |
− | सॉफ़्टवेयर जो गढ़ा है तूने, उसकी कोई तोड़ नहीं है| | + | कठिन वक्त में आता है तू, सच्ची राह दिखाता है तू| |
− | कितने फीचर, कितने फँक्शन, करता सारे काम|| | + | हम से जो हो पाए न सम्भव, चुटकी में कर जाता है तू| |
− | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम... | + | अहंकार मिटता है जहाँ पे, वहीं है तेरा धाम|| |
− | + | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम... | |
− | सुना है धरती, अम्बर, पानी, अग्नि, हवा सब तुझसे हैं| | + | |
− | सुख-दुख, अच्छा-बुरा, गतागत, हानि-ऩफा सब तुझसे हैं| | + | हार्डवेयर जो मढ़ा है तूने, उसकी कोई होड़ नहीं है| |
− | सृष्टि के सारे करतब, तुझसे पाते अंजाम|| | + | सॉफ़्टवेयर जो गढ़ा है तूने, उसकी कोई तोड़ नहीं है| |
− | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम... | + | कितने फीचर, कितने फँक्शन, करता सारे काम|| |
− | + | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम... | |
− | ढाई आखर का तेरा मोबाइल नम्बर है जाहिर| | + | |
− | कइयों फोन अटेंड करे - इक साथ, कौन - तुझ सा माहिर| | + | सुना है धरती, अम्बर, पानी, अग्नि, हवा सब तुझसे हैं| |
− | तेरा ओफिस चले रात दिन, सुबह हो या फिर शाम|| | + | सुख-दुख, अच्छा-बुरा, गतागत, हानि-ऩफा सब तुझसे हैं| |
− | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम... | + | सृष्टि के सारे करतब, तुझसे पाते अंजाम|| |
− | + | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम... | |
− | हार्डवेयर - मानव शरीर | + | |
− | सॉफ़्टवेयर - मानव मस्तिष्क | + | ढाई आखर का तेरा मोबाइल नम्बर है जाहिर| |
− | ढाई आखर = प्रेम | + | कइयों फोन अटेंड करे - इक साथ, कौन - तुझ सा माहिर| |
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+ | हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम... | ||
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+ | हार्डवेयर - मानव शरीर | ||
+ | सॉफ़्टवेयर - मानव मस्तिष्क | ||
+ | ढाई आखर = प्रेम | ||
+ | <poem> |
17:42, 30 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम|
ना रूप तेरा, ना रंग तेरा,
ना जानू तेरा नाम||
हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...
कठिन वक्त में आता है तू, सच्ची राह दिखाता है तू|
हम से जो हो पाए न सम्भव, चुटकी में कर जाता है तू|
अहंकार मिटता है जहाँ पे, वहीं है तेरा धाम||
हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...
हार्डवेयर जो मढ़ा है तूने, उसकी कोई होड़ नहीं है|
सॉफ़्टवेयर जो गढ़ा है तूने, उसकी कोई तोड़ नहीं है|
कितने फीचर, कितने फँक्शन, करता सारे काम||
हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...
सुना है धरती, अम्बर, पानी, अग्नि, हवा सब तुझसे हैं|
सुख-दुख, अच्छा-बुरा, गतागत, हानि-ऩफा सब तुझसे हैं|
सृष्टि के सारे करतब, तुझसे पाते अंजाम||
हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...
ढाई आखर का तेरा मोबाइल नम्बर है जाहिर|
कइयों फोन अटेंड करे - इक साथ, कौन - तुझ सा माहिर|
तेरा ओफिस चले रात दिन, सुबह हो या फिर शाम||
हे अज्ञात विधाता तुझे प्रणाम...
हार्डवेयर - मानव शरीर
सॉफ़्टवेयर - मानव मस्तिष्क
ढाई आखर = प्रेम