"मैं / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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− | ये वो 'मैं' है | + | <poem> |
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− | किस के अंदर नहीं है? | + | और कभी कभी, |
− | बोलो-बोलो!!! | + | उस का, |
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− | और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है | + | किस के अंदर नहीं है? |
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− | पर डरता हूँ मैं भी | + | हैं ना सबके अंदर? |
− | उस कड़वे सत्य को | + | कम या ज़्यादा!!!!!! |
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− | कहते हुए................. | + | और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है |
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− | इसलिए | + | |
− | सिर्फ़ इतना ही कहूँगा | + | पर डरता हूँ मैं भी |
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− | इस 'मैं' का दीवाना तो बनूँ | + | सार्वजनिक रूप से |
− | पर, उतना नहीं- | + | कहते हुए................. |
− | कि ये 'मैं' तो परवान चढ़ जाए | + | |
− | और खुद मैं- | + | इसलिए |
− | उलझ के रह जाऊँ, | + | सिर्फ़ इतना ही कहूँगा |
− | इस परवान चढ़े हुए, | + | कि मैं |
− | 'मैं' के द्वारा बुनी गयी- | + | इस 'मैं' का दीवाना तो बनूँ |
− | ज़ालियों में............ | + | पर, उतना नहीं- |
− | + | कि ये 'मैं' तो परवान चढ़ जाए | |
− | आप क्या कहते हैं? | + | और खुद मैं- |
− | < | + | उलझ के रह जाऊँ, |
+ | इस परवान चढ़े हुए, | ||
+ | 'मैं' के द्वारा बुनी गयी- | ||
+ | ज़ालियों में............ | ||
+ | |||
+ | आप क्या कहते हैं? | ||
+ | </poem> |
17:53, 30 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
मैं
मैं
मैं
ये बकरी वाली 'में-में' नहीं है
ये वो 'मैं' है
जो आदमी को
शेर से
बकरी बनाता है..............
मैं,
हर बार आदमी को,
शेर से बकरी नहीं बनाता...........
कभी कभी
बकरी को भी,
शेर बना देता है................
और कभी कभी,
उस का,
स्वयँ से,
साक्षात्कार भी करा देता है..............
'मैं'
किस के अंदर नहीं है?
बोलो-बोलो!!!
हैं ना सबके अंदर?
कम या ज़्यादा!!!!!!
और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है
इस 'मैं' के बारे में............
पर डरता हूँ मैं भी
उस कड़वे सत्य को
सार्वजनिक रूप से
कहते हुए.................
इसलिए
सिर्फ़ इतना ही कहूँगा
कि मैं
इस 'मैं' का दीवाना तो बनूँ
पर, उतना नहीं-
कि ये 'मैं' तो परवान चढ़ जाए
और खुद मैं-
उलझ के रह जाऊँ,
इस परवान चढ़े हुए,
'मैं' के द्वारा बुनी गयी-
ज़ालियों में............
आप क्या कहते हैं?