भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सलीक़ेदार कहन के नशे में चूर था वो / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> सलीक़ेदार कहन के न…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:39, 1 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

सलीक़ेदार कहन के नशे में चूर था वो|
दिलोदिमाग़ पे तारी अजब सुरूर था वो|१|

वो एक दौर की पहिचान बन गया खुद ही|
न मीर, जोश न तुलसी, कबीर, सूर था वो|२|

तमाम लोगों ने अपने क़रीब पाया उसे|
तो क्या हुआ कि ज़रा क़ायदों से दूर था वो|३|

लबेख़मोश की ताक़त का इल्म था उस को|
कोई न बोल सका यूं कि बे-श'ऊर था वो|४|

फ़िज़ा के रंग में शामिल है ख़ुशबू-ए-दुष्यंत|
ज़हेनसीब, हमारे फ़लक का नूर था वो|५|