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"माँ / गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'" के अवतरणों में अंतर
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माँ आँखों से ओझल होती,
आँखें ढूँढ़ा करती रोती
।
वो आँखों में स्वप्न सँजोती
,
हर दम नींद में जगती सोती।
वो मेरी आँखों की ज्योति,
मैं उसकी आँखों का मोती।
कितने आँचल रोज भिगोती,
वो फिर भी ना धीरज खोती
।
कहता घर मैं हूँ इकलौती
,
दादी की मैं पहली पोती
।
माँ की गोदी स्वर्ग मनौती
,
क्या होता जो माँ ना होती
।
नहीं जरा भी हुई कटौती
,
गंगा बन कर भरी कठौती।
बड़ी हुई मैं हँसती रोती
,
आँख दिखाती जो हद खोती।
शब्द नहीं माँ कैसी होती,
माँ तो बस माँ जैसी होती।
आज हूँ जो, वो कभी न होती,
मेरे संग जो माँ ना होती।।