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दिनभर दिन भर फ़ोन धरे कानों पर
ये जाने क्या-क्या बतियाए
ऐसी चहकी चिड़िया घर की
बात-बात पर प्यार जताए
जरा देर में खुद ख़ुद चिढ़ जाएअपनी -उनकी, उनकी -अपनी
जाने कितनी कथा सुनाए
उतने बोल सुनाती केवल
जितना दिनभर दिन भर में जी पाए
बातें करती घर आँगन की
होती बात थके-हारे की
उतनी ही बातें करती , बस
जितनी यादों में आ पाए
झीने-झीने जाल बिछाती
मीठे बोलों से भरमाकर
अंधियारेपन अँधियारेपन में धकियाती
जिसको चाहे उसे उठाती
मनमाफ़िक मन-माफ़िक सपने दिखलाए
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