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"तेरी इन आंखों के इशारे पागल हैं / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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17:22, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण

तेरी इन आंखों के इशारे पागल हैं इन झीलों की मौजें,धारे पागल है

चाँद तो कुहनी मार के अक्सर गुज़रा है अपनी ही क़िस्मत के सितारे पागल हैं

कमरों से तितली का गुज़र कब होता है गमलों के ये फूल बेचारे पागल हैं

अक्लो खि़रद का काम नहीं है साहिल पर नज़रें घायल और नज़ारे पागल हैं

शेरो सुखन की बात इन्हीं के बस की है ‘अना’ वना जो दर्द के मारे पागल हैं