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"आप इस छोटे से फ़ितने को जवां होने तो दो / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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19:20, 6 सितम्बर 2011 का अवतरण
आप इस छोटे से फ़ितने को जवां होने तो दो वो भवें चढ़ने तो दो तीरो-कमां होने तो दो
हुस्ऩ की आवारगी पीछे पड़ी है देर से इश्क़ की पाकीज़गी को हमज़बां होने तो दो
सब्र भी टूटे तसल्ली देके जब तोड़े कोई अश्क भी गिर जायें पलकों पर गिरां होने तो दो
तुम हमारे दिल के मालिक हो हमें मालूम है पर किरायेदार से ख़ाली मकां होने तो दो
सैकड़ों क़िस्से उठेंगे वाइज़ाने-शहर के तुम शहर में महफ़िले-आवारगां होने तो दो
फिर उठा देना क़यामत फिर बुलाना हश्र में इक दफ़ा आराइशे-बज़्मे-जहां होने तो दो
फिर तिरी यादें उठें फिर ज़ख़्म के टांके खुलें फिर ग़ज़ल लिक्खूं ज़रा दिल नीमजां होने तो दो
वो अधूरा शेर अब तकमील के नज़दीक़ है आज उस नामेहरबां को मेहरबां होने तो दो