भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सांवली रात / अरुण शीतांश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: <poem> सुबह की पहली किरण पपनी पर पड़ती गई और मैं सुंदर होता गया शाम की …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:05, 6 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
सुबह की पहली किरण
पपनी पर पड़ती गई
और मैं सुंदर होता गया
शाम की अंतिम किरण
अंतस पर गिरती गई
और मैं हरा होता रहा
रात की रौशनी
पूरे बदन पर लिपटती गई
और मैं सांवला होता गया