भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरा खूने-जिगर होने को है फिर / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: मेरा खूने-जिगर होने को है फिर कोई तिरछी नज़र होने को है फिर तिरी ख…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार='अना' क़ासमी
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
{{KKCatGhazal‎}}‎
 +
<poem>
 
मेरा खूने-जिगर होने को है फिर
 
मेरा खूने-जिगर होने को है फिर
 
कोई तिरछी नज़र होने को है फिर  
 
कोई तिरछी नज़र होने को है फिर  
पंक्ति 21: पंक्ति 28:
  
 
तख़य्युल अब मुजस्सम हो चला है  
 
तख़य्युल अब मुजस्सम हो चला है  
‘अना’ तू बेहुनर होने को है फिर
+
‘अना’ तू बेहुनर होने को है फिर</poem>

15:43, 7 सितम्बर 2011 का अवतरण

मेरा खूने-जिगर होने को है फिर
कोई तिरछी नज़र होने को है फिर

तिरी खुश्बू ज़बां को छू रही है
ये लहजा मोतबर होने को है फिर

किसी की आंख में फिर बस गया हूं
जज़ीरे पर गुज़र होने को है फिर

हुजूमे-दिलबराँ फिर दिल में उमड़ा
ये गांव इक नगर होने को है फिर

ये आँसू गर्मतर होने लगे हैं
ज़माने को ख़बर होने को है फिर

कहानी में दरार आने लगी है
ये क़िस्सा मुख़्तसर होने को फिर

दिये का तेल सारा जल चुका है
बस इक रक्से-शरर होने को है फिर

तख़य्युल अब मुजस्सम हो चला है
‘अना’ तू बेहुनर होने को है फिर