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"सुलगता दर्द – कश्मीर / सजीव सारथी" के अवतरणों में अंतर
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16:05, 7 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
उन खामोश वादियों में,
किसी शांत सी झील पर,
जब लुढ़क कर गिरता है,
कोई पत्थर, किसी पहाडी से,
तो उसे लगता है-
कहीं बम फटा...
वह दोनों कानों पर हाथ रखकर,
चीखता है,
और सहम कर सिमट जाता है,
अपने अंधेरों में,
अंधेरे - जो पाले हैं उसने,
अपनी आखों में,
अंधेरे - जो बहते हैं उसकी रगों में,
उसकी बंद ऑंखें,
कभी खुलती नही रोशनी में,
एक बार देखी थी, उजाले में मैंने,
वो ऑंखें,
"ऐ के ४७" की गोलियों के सुराख थे उसमें,
धुवाँ सा जल रहा था,
उस पथरीली जमीं पर,
कोई लहू का कतरा न था,
मगर कल रात जब वो,
कुरेद रहा था मिटटी,
मसल रहा था फूल पत्तियों को,
बेदिली से तब,
हाँ तब... उसकी उन आँखों से बहा था,
खौलते लावे सा -
गर्म "सुलगता दर्द..."