भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मजा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" }} {{KKCatGhazal}} <poem> मजा आ रहा है ग…)
(कोई अंतर नहीं)

11:47, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण


मजा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी
लगे जैसे मुख में हो मीठी डली

हवा आंधी बन-बन के कैसे चली
उडा ले गई मिट्टी धूलों भरी

लटों को जो तूने यूं झटका दिया
पता बेखबर किस पे बिजली गिरी

निगाहों में कैसी ये मदहोशियां
हमें मार डालें न बे मौत ही

पुकारा जो तुमने तो मैं आ गया
मेरी बात "आज़र" न तुमने सुनी