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"जीवन मूल्यों में विप्लव हो / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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(→रमा द्विवेदी की रचनाएं) |
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मद तेरा इस कदर बढा कि<br> | मद तेरा इस कदर बढा कि<br> | ||
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वन जीवों का भी संहार चाहिए॥<br> | वन जीवों का भी संहार चाहिए॥<br> | ||
बर्बरता का नंगा नाच कर रहे<br> | बर्बरता का नंगा नाच कर रहे<br> | ||
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उनकी भी हत्या कर डाली ॥<br> | उनकी भी हत्या कर डाली ॥<br> | ||
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पर तुम तो कुछ कर रहे और ?<br> | पर तुम तो कुछ कर रहे और ?<br> | ||
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पर तुमने वासना के इतिहास रचाए।<br> | पर तुमने वासना के इतिहास रचाए।<br> | ||
जब आती है मौत सियार की <br> | जब आती है मौत सियार की <br> | ||
| − | तब वे | + | तब वे दौड़ नगर मे आयें ॥<br> |
22:05, 12 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
इतना भी संत्रास न दो
कोमलता जग से मिट जाए।
जीवन मूल्यों में विप्लव हो
शिव का सिंहासन हिल जाए ॥
जब जब नारी हुई कुपित
सिंहासन भी बदल गए हैं।
इंसानों की बात ही क्या?
स्वयं राम वनवास गए हैं॥
मद तेरा इस कदर बढा कि
नशा और भी तुझे चाहिए ।
कामुक शक्ति बढ़ाने को
वन जीवों का भी संहार चाहिए॥
बर्बरता का नंगा नाच कर रहे
तुमने हर हद तोड़ है डाली ।
दुधमुंहों तक को न छोड़ा
उनकी भी हत्या कर डाली ॥
चेतो-चेतो अब भी चेतो
वर्ना बचने का पाओगे न कहीं ठौर।
पौरूष दिखलाने के मार्ग कई
पर तुम तो कुछ कर रहे और ?
ऋषि-मुनियों ने रची रिचाएं
पर तुमने वासना के इतिहास रचाए।
जब आती है मौत सियार की
तब वे दौड़ नगर मे आयें ॥
