भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम आये हो न शब-ए-इन्तज़ार गुज़री है / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
अगर्चे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है<br><br>
 
अगर्चे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है<br><br>
  
हुई है हज़रत-ए-नासेह से गुफ़्तगू जिस शब<br>
+
हुई है हज़रत-ए-नासेह<ref>नसीहत देने वाला </ref> से गुफ़्तगू जिस शब<br>
 
वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है<br><br>
 
वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है<br><br>
  
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है<br><br>
 
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है<br><br>
  
चमन में ग़ारत-ए-गुलचीं से जाने क्या गुज़री<br>
+
चमन में ग़ारत-ए-गुलचीं<ref>फूल तोड़ने से क्षति </ref> से जाने क्या गुज़री<br>
क़फ़स से आज सबा बेक़रार गुज़री है
+
क़फ़स <ref>पिंजड़ा</ref> से आज सबा बेक़रार गुज़री है
 +
 
 +
शब्दार्थ
 +
<references/>

07:21, 13 सितम्बर 2011 का अवतरण

तुम आये हो न शब-ए-इन्तज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है

जुनूँ में जितनी भी गुज़री बकार गुज़री है
अगर्चे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है

हुई है हज़रत-ए-नासेह<ref>नसीहत देने वाला </ref> से गुफ़्तगू जिस शब
वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था
वो बात उनको बहोत ना-गवार गुज़री है

न गुल खिले हैं, न उनसे मिले, न मै पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है

चमन में ग़ारत-ए-गुलचीं<ref>फूल तोड़ने से क्षति </ref> से जाने क्या गुज़री
क़फ़स <ref>पिंजड़ा</ref> से आज सबा बेक़रार गुज़री है

शब्दार्थ <references/>