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"क्या क़शिश हुस्ने-रोज़गार में है / शकील बदायूँनी" के अवतरणों में अंतर

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मेरा दिल मेरे इख़्तियार में है  
 
मेरा दिल मेरे इख़्तियार में है  
  
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एक नग़्मा भी इस पुकार में है  
  
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इक फ़रिश्ता भी इन्तिज़ार में है  
 
इक फ़रिश्ता भी इन्तिज़ार में है  
  
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1. आकर्षण  2. ज़माने के सौन्दर्य में 3. आवाज़
 
4. ग़म के पर्दे से 5. धूल के पर्दे में 6. आधी रात
 
के आर्तनाद को 7. मधुशाला का दरवाज़ा
 
8. चक्कर काटने में लीन 9. ब्रह्माण्ड 10. गणना
 
 
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18:39, 13 सितम्बर 2011 का अवतरण

क्या क़शिश<ref>आकर्षण</ref> हुस्ने-रोज़गार में<ref>ज़माने के सौन्दर्य में</ref> है
ग़म भी डूबा हुआ बहार में है

जब से खाए हैं उस नज़र के फ़रेब
मेरा दिल मेरे इख़्तियार में है

दिल की धड़कन ये दे रही है सदा<ref> आवाज़</ref>
जा कोई तेरे इन्तिज़ार में है

हो परीशाँ हिजाबे-ग़म से<ref>ग़म के पर्दे से</ref> न दिल
कारवां पर्दा-ए-ग़ुबार में<ref> धूल के पर्दे में</ref> है

नाला-ए-नीम शब को<ref>आधी रात</ref> को ग़ौर से सुन
एक नग़्मा भी इस पुकार में है

खोल दे बाबे-मयकदा<ref>मधुशाला का दरवाज़ा</ref> साक़ी
इक फ़रिश्ता भी इन्तिज़ार में है

महवे-गर्दि<ref>चक्कर काटने में लीन</ref> है कायनात<ref>ब्रह्माण्ड</ref> शकील
मेरी तक़दीर किस शुमार<ref>गणना</ref> में है

शब्दार्थ
<references/>