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"ऐसा लगता है कि जैसे कुछ न कुछ होने का है / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर
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छो (एसा लगता है कि जैसे कुछ न कुछ होने का / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" का नाम बदलकर ऐसा लगता है कि जैसे कुछ न ) |
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(कोई अंतर नहीं)
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12:47, 15 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
ऐसा लगता है कि जैसे कुछ न कुछ होने का है
क्या बचा है पास अपने जिसका डर खोने का है
क्यूं तसल्ली दे रहे हैं झूठी अपने आपको
जागने के वक्त को हम कह रहे सोने का है
इस तरफ भी गौर करने से भला हो देह का
तन तो हमने धो लिए है मन बचा धोने का है
जब बुरा कहने लगे खुद अपनी यूँ औलाद भी
बोझ इससे और बढ़ कर तू बता ढोने का है
तू समझता होगा "आज़र" वो पिघल ही जाएगा
मुझको तो लगता नहीं कि फायदा रोने का है